Friday 27 April 2012

आइला ! ये क्या किया सचिन ...


ल जब मैने सुना कि सचिन तेंदुलकर ने 10 जनपथ में हाजिरी लगाई, तो मैं हैरान हो गया। क्योंकि दो दिन पहले ही उनका 39 वां जन्मदिन था, लेकिन आईपीएल के व्यस्त कार्यक्रम के बीच वो इतना भी समय नहीं निकाल पाए कि अपने घर मुंबई में परिवार के साथ जन्मदिन की खुशियां मनाएं। फिर ऐसी क्या आफत आ गई कि दिल्ली में आंधी पानी के बीच वो सोनिया के घर आ गए। अच्छा सचिन के साथ केंद्रीय मंत्री राजीव शुक्ला का होना थोड़ा हैरान करने वाला था, क्योंकि ये शुक्ला जी बस शुक्ला जी ही हैं। यानि ना ही में ना सी में फिर भी पांचो ऊंगली घी में। वैसे लोगों को ज्यादा इंतजार नहीं करना पड़ा, कांग्रेस ने खुद ये खबर लीक कराई और सभी न्यूज चैनल में एक साथ ब्रेकिंग न्यूज में सचिन छा गए। हर जगह सिर्फ एक ही खबर सचिन राज्यसभा में आएंगे, सचिन राज्यसभा में मनोनीत किए गए।

कल इस खबर पर ज्यादा हो हल्ला नहीं हुआ, सियासी गलियारे से पहली प्रतिक्रिया जो आई, उसमें सभी ने सचिन का राज्यसभा में स्वागत किया। लेकिन रात में नेताओं ने सोचा कि ये क्या हो रहा है. कांग्रेस सचिन को राज्यसभा में मनोनीत कर 2014 की बाजी ना मार ले जाए। यही सोच कर दूसरे दलों के नेताओं ने बाहें चढा ली, नतीजा ये हुआ कि आज सुबह संसद परिसर में नेताओं के सुर बदल गए। मामला सचिन का है, वो लोगों के दिलों पर राज करते हैं। लिहाजा राजनीतिक दलों ने विरोध का नया तरीका इजाद किया और कहा कि अच्छा होता कि राज्यसभा में मनोनीत करने के बजाए उन्हें भारत रत्न दिया जाता। हमें उम्मीद थी कि मराठी मानुष की बात करने वाली शिवसेना तो इस फैसले का स्वागत करेगी, क्योंकि सचिन मराठी हैं और उन्हें राज्यसभा में मनोनीत कर सम्मानित किया जा रहा है। लेकिन ऐसा नहीं हुआ शिवसेना ने सबसे तीखी प्रतिक्रिया दी और कहाकि कांग्रेस सचिन को लेकर राजनीति कर रही है। लेफ्ट नेताओं ने तो इसे जातिवाद से जोड़ दिया और कहाकि अगर सचिन मनोनीत हो सकते हैं तो सौरभ गांगुली क्यों नहीं ? कुल मिलाकर राजनीतिक गलियारों से जो बातें छनकर आ रही हैं वो कम से कम सचिन जैसे शांतिप्रिय व्यक्ति के लिए ठीक नहीं है।

वैसे सच तो ये है कि सचिन तेंदुलकर ने राज्यसभा की सदस्यता आसानी से कुबूल नहीं ही की होगी। निश्चित रूप से उन पर दबाव बनाया गया होगा, अगर मैं ये कहूं कि सरकार की ओर ये दबाव मुकेश अंबानी के जरिए बनाया गया हो तो इसमें किसी को हैरानी नहीं होनी चाहिए। केंद्र सरकार इस समय बहुत ही मुश्किल के दौर से गुजर रही है,उस पर तरह तरह के हमले हो रहे हैं, जनता का ध्यान बांटने के लिए उसके पास इससे बेहतर और कोई चारा नहीं था। पार्टी का मानना है कि सचिन को ये सम्मान देने से कुछ दिन मीडिया का रुख भी दूसरी ओर हो जाएगा। इसके अलावा आईपीएल में जहां हर बैट्समैन सबसे ज्यादा रन ठोक कर आरेंज कैप हासिल करने में लगा है, वहीं काग्रेस सचिन को व्हाइट कैप पहना रही है। निश्चित है कि हर मैंच अब कमेंटेटर सचिन की तारीफ में उन्हें सांसद बोलते भी नजर आएंगे। वैसे मेरी समझ में एक बात नहीं आ रही है, सचिन राज्यसभा में मनोनीत होने के पहले सोनिया गांधी से क्यों मिले ? जबकि अभिनेत्री रेखा के साथ तो ऐसा नहीं हुआ, उन्हें तो ये जानकारी मुंबई में ही दे दी गई। क्या यहां बुलाकर सोनिया गांधी देश को ये संदेश देना चाहतीं थी कि सचिन को मनोनीत करने का फैसला उन्होंने लिया है। यानि सोनिया की वजह से सचिन राज्यसभा में पहुंचे हैं।

वैसे सच कहूं तो सरकार जल्दबाजी में कुछ ऐसे फैसले करती है जिससे उसकी नासमझी दिखाई पड़ने लगती है। इससे पता चलता है कि सरकार की सोच कितनी घटिया स्तर की है। इससे ये भी पता चलता है कि सरकार के सलाहकारों का स्तर क्या है। अगर आप ऐसा कुछ करते हैं जिससे एक व्यक्ति का सम्मान हो और देश में कई लोगों का अपमान तो मुझे लगता है कि वो सम्मान ठीक नहीं है। क्रिकेट का जो एबीसी भी जानता होगा, उसे ये बात पता है कि क्रिकेट में भारत ने जब पहली बार वर्ल्ड कप जीता, कपिल देव की अगुवाई में तो उस समय हम कभी सोच भी नहीं सकते थे कि भारत कभी वर्ल्ड कप भी जीत सकते हैं। अब तो हमारी टीम में ऐसे खिलाडी हैं कि हमें  हैरानी और आश्चर्च नहीं होता वर्ल्ड कप जीत जाने में। ऐसे में अगर ये सम्मान कपिल देव या फिर सुनिल गावस्कर को दिया जाता तो लगता कि सरकार की सोच वाकई खेल को प्रोत्साहित करने की है राजनीति की नहीं। सचिन को राज्यसभा में भेजने से साफ संदेश जा रहा है कांग्रेस सचिन के जरिए अपनी ईमेज ठीक करने में लगी है। सचिन ने अभी सन्यास नहीं लिया है, अभी उनकी रुचि खेल में बनी हुई है। देश के लोगों को उन पर नाज है, फिर बेचारे को बेवजह क्यों विवाद में घसीटा गया। मेरा मानना है कि कांग्रेसी निकम्मे.. पार्टी को फायदा पहुंचाने के लिए किसी भी हद को पार कर सकते हैं। बहरहाल नियम के तहत मनोनीत सदस्य छह महीने तक कोई पार्टी ज्वाइन नहीं कर सकता, अगर यही हाल रहा तो छह महीने बाद सचिन कहीं कांग्रेसी चोले मे ना सिर्फ नजर आएंगे बल्कि राहुल गांधी की सभाओं में भीड़ जुटाने का काम भी करते दिखेंगे।

अच्छा राज्यसभा में बैक बेंचर होकर सचिन करेंगे क्या ? कोई सुनता तो है नही,  संसद में होने वाले शोर शराबे में बेचारे सचिन आइला आइला ही चिल्लाते रह जाएंगे। मैं जानता हूं कि कम से कम खेलों के मामले में सचिन बेहतर सुझाव दे सकते हैं, वो क्रिकेट के अलावा दूसरे खेलों की बेहतरी के लिए भी अच्छा काम कर सकते हैं, पर जरूरी नहीं था कि इसके लिए वो संसद भवन ही जाते। क्योंकि आज तक जो सचिन पूरे देश की आंखों का तारा था, अब वो कांग्रेसी होकर एक तपके का होकर रह जाएगा। सचिन के इस कदम से निश्चित रूप से उसके खेल पर प्रभाव पडेगा। बहरहाल इस नई जिम्मेदारी को सचिन कैसे संभालते हैं, कुछ नया करते है, यहां भी नाट आउट शतकों का शतक लगाते हैं, या फिर पहली गेंद पर बोल्ड होकर निकल लेते हैं। बहरहाल सचिन ने अभी इस नई पारी की शुरुआत नहीं की है तो हमें ऐसा कुछ नहीं सोचना चाहिए, हम उनकी इस नई पारी की कामयाबी के लिए शुभकामनाएं देते हैं।

चलिए ये तो हो गई राज्यसभा में मनोनीत होने की बात। लेकिन सबसे बड़ा सवाल ये कि कांग्रेस ने अपनी इच्छा तो पूरी कर ली, लेकिन देश की इच्छा कब पूरी होगी ? देश तो उन्हें भारत रत्न देना चाहता है। सरकार भारत रत्न के मसले पर बिल्कुल खामोश है। सच तो ये है कि अगर राज्यसभा में सचिन कुछ बेहतर नहीं कर पाए तो फिर भारत रत्न का मामला भी ठंडा ही पड़ जाएगा। वैसे आपको इस मामले में सच बताना जरूरी है। जानकारों का कहना है कि सरकार सचिन को भारत रत्न देने में जल्दबाजी नहीं करना चाहती।  भारत रत्न के बाद सचिन को नैतिकता के आधार पर तमाम चीजों को छोड़ना होगा। हालाकि ये जरूरी नहीं है, लेकिन भारत रत्न सचिन तेंदुलकर अगर कुछ समय बाद अंडर गारमेंट के विज्ञापन में नजर आए, या फिर टायर ट्यूब का विज्ञापन करें तो ये अच्छा नहीं लगेगा। सचिन का चेहरा अभी बिकाऊ है, जब वो सन्यास लेगें तो कम से कम साल भर तो तमाम बड़ी बड़ी कंपनियां चाहेंगी कि उन्हें अपने प्रोडक्ट का ब्रांड अंबेसडर बनाएं। सूत्र तो कहते हैं कि अभी भारत रत्न न दिए जाने की पीछे एक वजह ये भी रही है।
 


Monday 23 April 2012

ये बात जरा अंदर की है ...


ये कैसी टीम है भाई जो अपने कप्तान की ही ऐसी तैसी करती रहती है। अन्ना ने तो खुद बीते शुक्रवार यानि दो दिन पहले बाबा रामदेव से गुड़गांव में मुलाकात की और मुलाकात के बाद बकायदा प्रेस कान्फ्रेंस में ऐलान किया कि लोकपाल और कालेधन के मसले पर हम दोनों में कोई मतभेद नहीं है। दोनों लडाई साथ लड़ी जाएगी और हम दोनों कंधे से कंधा मिलाकर आंदोलन को आगे बढाएंगे। इस प्रेस कॉन्फ्रेंस में 1 मई से आंदोलन चलाने की भी घोषणा की गई। अब 48 घंटे नहीं बीते और टीम अन्ना ने बैठक कर साफ कर दिया कि बाबा रामदेव के साथ साझा आंदोलन नहीं चलाया जा सकता। हां जब रामदेव को हमारी जरूरत होगी तो हम उनका साथ देंगे, वैसे ही जब हमें उनकी जरूरत होगी तो हम उनकी मदद लेंगे।

अब मैं ये नहीं समझ पा रहा हूं कि जब अन्ना की राय कोई मायने ही नहीं रखती तो ये टीम अन्ना कैसे है ? इस टीम का नाम तो वो होना चाहिए जिसकी राय को लोग आदेश मानते हों। या फिर ये मान लिया जाए कि अन्ना इस टीम के सिर्फ मुखौटा भर हैं, चूंकि अन्ना का चेहरा बिकता है, इसलिए टीम के बाकी सदस्य मजबूरी में उनकी अगुवाई को स्वीकार कर रहे हैं। वैसे आपको याद दिलाऊं, जब अन्ना और रामदेव शुक्रवार को मीडिया के सामने आए तो टीम अऩ्ना का कोई सदस्य वहां नहीं था। उसी समय मीडिया को लग गया था कि अन्ना यहां जो कुछ भी कह लें, ये बात मानी नहीं जाएगी। इसीलिए एक पत्रकार साथी ने सवाल भी दागा कि यहां टीम अन्ना का कोई सदस्य क्यों नहीं मौजूद है ? जवाब अन्ना के बजाए बाबा रामदेव ने दिया, बोले अरविंद केजरीवाल को यहां होना चाहिए था, पर वो मंत्रियों का काला चिट्ठा तैयार कर रहे हैं, इसलिए यहां नहीं आए। जबकि सच ये था कि रामदेव के साथ टीम अन्ना कोई संपर्क रखना ही नहीं चाहती। अब इस बात का खुलासा भी हो गया।

अब बडा सवाल ये है कि आखिर टीम अन्ना को बाबा रामदेव से परहेज क्यों है? क्या बाबा रामदेव कुछ ऐसा वैसा कर रहे हैं, जो देशहित में नहीं है? क्या बाबा रामदेव की मांग जायज नहीं है? क्या बाबा रामदेव निष्पक्ष नहीं है? क्या बाबा रामदेव दागी हैं? क्या बाबा रामदेव का मुद्दा राष्ट्रविरोधी है ? मैं व्यक्तिगत रूप से बाबा रामदेव  को कभी भी राष्ट्रविरोधी नहीं कह सकता, लेकिन उनकी ईमानदारी पर मुझे हमेशा से शक रहा है और आज भी है। बाबा रामदेव अपने प्रभाव का इस्तेमाल कर गरीबों और मजलूमों का शोषण करते हैं। बेचारे गरीब किसानों की जमीन को कब्जा लेते हैं। ऐसी तमाम शिकायतें उत्तराखंड सरकार के अफसरों से की गई हैं, पर वहां बीजेपी सरकार रहने की वजह से मामले की सही तरह ना जांच हुई और ना ही किसानों को न्याय मिला। बाबा रामदेव का बीजेपी से गहरा संबंध है, ये बात किसी से छिपी नहीं है, क्योंकि बाबा रामदेव बीजेपी को चंदे के रूप में मोटी रकम देते रहे हैं। मुझे लगता है कि अब उत्तराखंड में कांग्रेस की सरकार है और जल्दी ही बाबा का असली चेहरा सामने आ जाएगा, क्योंकि अब कम से कम उनके खिलाफ मिली शिकायतों की जांच तो निष्पक्ष तरीके से हो सकेगी। मुझे लगता है कि टीम अन्ना नहीं चाहती कि बाबा रामदेव के व्यक्तिगत मामलों में वो उनके साथ खड़ी हो। वैसे सबसे बड़ा डर टीम अन्ना को ये भी है कि कहीं बाबा रामदेव उनके आंदोलन को हाईजैक ना कर लें, क्योंकि इसमें कोई दो राय नहीं कि ना सिर्फ देश में बल्कि दुनिया भर मे बाबा रामदेव के समर्थक हैं। रामदेव के मुकाबले अन्ना का समर्थन बहुत कम है।

एक सवाल और हम सबके दिमाग में उठता रहता है। ये कि आखिर अन्ना रामदेव को साथ क्यों रखना चाहते हैं। दरअसल सच्चाई ये है अन्ना की कोई बात मानीं नहीं जाती। अन्ना इन बिगडैलों से कब का अलग हो चुके होते। क्योंकि टीम अन्ना के सभी अग्रिम पंक्ति के नेताओं का चेहरा दागदार है, ये बात अन्ना भी अच्छी तरह से जानते हैं। पर अन्ना इस समय उत्साह से भरे हुए हैं, उन्हें लगता है कि भूखे रहकर वो देश में दूसरे गांधी का दर्जा हासिल कर लेगें। इसके लिए जरूरी है कि इस टीम को साथ रखा जाए। क्योंकि किसी भी आंदोलन को अंजाम तक पहुंचाने के लिए संसाधनों यानी पैसे की जरूरत होगी। अन्ना फक्कड़ हैं, पर इस टीम ने उन्हें आगे रखकर देश विदेश से खूब चंदा जमा कर लिया है। सही बात तो ये है कि टीम में मतभेद का एक बड़ा कारण चंदे की ये रकम भी है। हम सब देख रहे हैं कि  आजकल टीम के सदस्यों का पैर जमीन पर है ही नहीं। हर रोज हवाई यात्राएं हो रही हैं। अरे भाई जनता ने आप पर बहुत भरोसा कर आपको चंदा दिया है, कम से कम जरूरी होने पर ही हवाई यात्रा करें। देश भर में ट्रेन की अच्छी सुविधा है, कभी कभी ट्रेन का सफर भी कर लीजिए। लेकिन नहीं, दिखाने को कुछ सदस्य महीनों एक ही पैंट शर्ट और हवाई चप्पल पहने दिखाई देंगे, पर इनका असली चेहरा बहुत ही बदबूदार है।
सूत्र तो यहां तक बताते हैं कि अन्ना अपनी टीम से उकता गए हैं। इसीलिए कई बार वो टीम का विस्तार करने की बात करते है। फिर ऐसी कौन सी वजह है कि आज तक टीम का विस्तार नहीं किया जा सका। दरअसल जो चार पांच लोग अग्रिम पंक्ति में शामिल हैं, वो अपना वर्चस्व कम नहीं होने देना चाहते। फिर आंदोलन के नाम पर जमा हो रहे करोडों की रकम पर अपना ही अधिकार बनाए रखना चाहते हैं। टीम में नए सदस्यों को शामिल करने में इन्हें ऐतराज नहीं है, पर वो उन्हें दूरदराज के इलाकों में जनजागरण करने से ज्यादा कोई जिम्मेदारी नहीं देना चाहते। जबकि खुद अन्ना चाहते हैं कि इस आंदोलन में सेना के रिटायर अफसरों और देश के ईमानदार सामाजिक कार्यकर्ताओं को शामिल कर उन्हें टीम अन्ना में समान दर्जा और अधिकार दिया जाना चाहिए। यही सब कुछ ऐसी वजहें हैं, जिससे अन्ना कई बार परेशान रहते हैं। जानकारों का कहना है कि अन्ना इसीलिए बाबा रामदेव को साथ रखना चाहते हैं कि अगर उनकी टीम ने अपने में सुधार नहीं किया तो वो यहां से पूरी तरह अलग होकर बाबा रामदेव के साथ जनलोकपाल बिल और कालेधन के आंदोलन की अगुवाई करेंगे। 

एक महत्वपूर्ण करेक्टर है सुरेश पढारे। अगर मैं ये कहूं कि सुरेश सबसे ज्यादा ताकतवर है, तो इसमें कुछ भी गलत नहीं है। पहले आप जान लें कि ये सुरेश है कौन? दरअसल सुरेश कहने को तो अन्ना का पीए है। वैसे पहले ये अन्ना के गांव रालेगनसिद्धी में ही ठेकेदारी करता था। बेईमानी के आरोप में गांव पंचायत की खुली बैठक जिसमें खुद अन्ना मौजूद थे। कहा गया है कि ये ईमानदार नहीं है। गंभीर आरोपों के चलते इसका ठेका रद्द कर दिया गया और तय हुआ कि ये अब कोई काम नहीं करेगा। इससे गांव का काम तो छीन लिया गया, लेकिन अगले ही दिन अन्ना इसकी गाड़ी पर सवार होकर जहां कहीं भी आना जाना हो सफर करने लगे। गांव के कुछ वरिष्ठ लोगों ने इस पर ऐतराज भी किया, पर अन्ना ने इसका साथ नहीं छोड़ा। बताया जाता है कि टीम अन्ना को पता है कि सुरेश पढारे की बात अन्ना नहीं टालते हैं, लिहाजा वो भी सुरेश को हर तरीके से खुश रखने की कोशिश करते रहते हैं। कई बार जब अन्ना नाराज होते हैं कि तो उन्हें मनाने की जिम्मेदारी सुरेश को ही सौंपी जाती है और पढारे अपनी भूमिका अच्छी तरह से निभाते हैं। अगर मैं ये कहूं कि अन्ना के इस टीम के साथ अभी तक बने रहने में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका सुरेश की है, तो बिल्कुल गलत नहीं होगा।

वैसे सच तो ये है कि टीम अन्ना ने जिस तरह से अन्ना हजारे का अपमान किया है, इसे लेकर वो बेहद तकलीफ में हैं। अन्ना को लगने लगा है कि टीम में उनकी कोई अहमियत नहीं रह गई है. बल्कि टीम महज उनके नाम का इस्तेमाल भर कर रही है। बताते हैं कि मुंबई में अन्ना का जो आंदोलन फ्लाप हुआ, टीम इसके लिए अन्ना को जिम्मेदार मानती है। बात खुलकर कहने की कोई हिम्मत नहीं जुटा पा रहा है, पर कहा जा रहा है कि टीम को लगता था कि अन्ना महाराष्ट्र के रहने वाले हैं और यहां उनके नाम पर लाखों लोग जमा होंगे, पर ऐसा नहीं हुआ और अनशन को बीच में ही खत्म करना पड़ गया। दिल्ली में ज्यादा भीड़ होती है तो अन्ना को समझाया जाता है कि ये भीड़ हम दिल्ली वालों की वजहसे होती है। अब इन्हें कौन समझाए कि दिल्ली की भीड़ बंदर का नाच देखने जमा होती है। यहां फ्री का भोजन और ठेले के चाट, आइसक्रीम खाने के लिए होती है। हां हजार पांच सौ पूर्णकालिक कार्यकर्ता है, वो जरूर अपनी पूरी प्रतिभा दिखाने और टीम की नजर में अव्वल आने के लिए जरूर चिंघाडे मारते दिखाई देते हैं। बहरहाल अन्ना और रामदेव का मसला आसानी से शांत होने वाला नहीं है। टीम के बीच में अन्ना भले खामोश रह गए हों,लेकिन उन्हें ये पता ही है कि टीम समय समय पर उनके कम पढ़े लिखे होने की वजह से अपमानित करती है। अन्ना को लगता है कि अगर वो कोई बात सार्वजनिक मंच से कहते हैं तो उसे तुरंत नहीं बदला जाना चाहिए, क्योंकि इससे जनता में खराब संदेश जाता है। मगर टीम को लगता है कि अगर तुरंत उनकी बात का खंडन ना किया जाता तो उन्हें नुकसान होता।

आप पूछ सकते हैं कि अगर ये आंदोलन एक साथ किया जाएगा तो नुकसान क्या होगा। मैं बताता हूं सबसे बडा नुकसान पैसे का होगा। क्योंकि दुनिया को लगने लगेगा कि अब ये आंदोलन एक ही है और सभी लोग एक ही जगह चंदा देंगे। जाहिर है बाबा रामदेव के ट्रस्ट का नाम दुनिया में जाना पहचाना है, तो उनके खाते में ज्यादा रकम आएगी और टीम अन्ना के खाते में पैसा की कमी हो सकती है। और जब पूरा मसला पैसे का हो तो भला कौन अपने पैरो पर कुल्हाणी मारने को तैयार होगा। लिहाजा टीम को लगा कि ये बात पहले ही साफ कर दी जानी चाहिए कि हमारा आंदोलन और खाता अलग अलग है।

ये खाने के और ये हैं दिखाने के दांत
टीम अन्ना ने अपने एक संस्थापक सदस्य मुफ्ती शमीम काजमी को बाहर का रास्ता दिखा दिया। आरोप लगाया गया है कि मुफ्ती साहब मीटिंग की बातों को मोबाइल पर रिकार्ड करते थे और फिर उसे लीक करते थे। मेरा टीम अन्ना से सवाल है कि जब आपकी बात केंद्र सरकार से चल रही थी, वहां आपकी मुख्य मांगो में ये भी शामिल था की सरकार के साथ होने वाली मीटिंग की वीडियोग्राफी कराई जाए और ऐसा इंतजाम हो कि देश की जनता उसे देख सके। टीम अन्ना अगर इस सरकार के साथ होने वाली बैठकों की रिकार्डिंग की मांग कर सकती है तो उनकी अपनी मीटिंग में ऐसा कौन सा राज है जो वो जनता के सामने आने नहीं देना चाहते। यहां बात तो जनलोकपाल बिल के लिए आंदोलन कैसे चलाया जाए, इसी पर होती है ना। इसमे छिपाने जैसी क्या बात है ?  






Sunday 15 April 2012

खुद कृपा के लिए लाचार है निर्मल बाबा ...


निर्मल बाबा मुश्किल में हैं, भक्तों के लिए ईश्वर की कृपा का रास्ता खोलने वाले बेचारे बाबा अब खुद कृपा के लिए लाचार हैं। हालत ये हो गई है कि अब उन्हें अपने ही भक्तों की जरूरत पड़ रही है। उनसे कहा जा रहा है कि वो टीवी चैनलों को फोन करके खुद बताएं की बाबा के समागम में आने के बाद उनके जीवन में कैसा बदलाव आया है। बहरहाल यहां आपको एक एक छोटी सी खबर भी बताता चलूं, जब बाबा ने ट्वीट कर भक्तों से इस बात की अपील की तो टीवी चैनलों को लगा कि अब तो देश और दुनिया भर से इतने फोन आएंगे कि आफिस का काम प्रभावित होगा, इसलिए आफिस काम ठीक से चलता रहे, इसके लिए 10 -15 अलग से टेलीफोन लाइनें ली जाएं। लेकिन कहते हैं ना जब आदमी का दिन खराब हो तो ऐसा ही होता है, आदमी हाथी पर बैठा होता है, फिर भी कुत्ता काट लेता है। कुछ ऐसा ही हाल अब बेचारे निर्मल बाबा का हो गया है, क्योंकि उनकी अपील के बाद इक्का दुक्का फोन ही टीवी चैनल्स के दफ्तरों में पहुंचे, जो बाबा के गुण गा रहे हैं। बल्कि बाबा की ठगी के शिकार  भक्त ज्यादा फोन कर रहे हैं। खैर ये काम पुलिस और जांच एजेंसियां करेंगी, मैं तो अपना काम करुंगा।

दरअसल निर्मल बाबा की महत्वाकांक्षा उन्हें इस हाल में ले आई है। निर्मल बाबा यानि निर्मल जीत सिंह पहले झारखंड में सड़कों की ठेकेदारी करता था, यहां फ्लाप हुआ तो धर्म की ठेकेदारी करने लगा। यहां मिली कामयाबी को ये पचा नही पाया। चलिए मैं आपको बताता हूं कि ये बाबा पकड़ा कैसे गया। दरअसल इसमें कुछ तो इसके कार्यकर्ताओं की बेवकूफी थी और कुछ बाबा का बड़बोलापन। अब आप खुद सोचें की टीवी चैनल पर बाबा का जो समागम दिखाया जाता है, उसके आखिर में दस पंद्रह तारीखें उन समागमों की बताई जाती है,  जिसकी बुकिंग बंद कर दी गई है। लेकिन जो समागम होने को है, उसका कहीं जिक्र नहीं किया जाता। अब ऐसे विज्ञापन दिखाओगे तो पकड़े ही जाओगे ना। दरअसल हो ये रहा था कि आप यहां फोन करें और बताएं की मैं बहुत परेशानी में हूं, मेरा समागम मे आना बहुत जरूरी है। तब परेशान भक्त को बताया जाता था कि आपको इसके लिए फास्ट ट्रैक बुकिंग करानी होगी। मतलब रेलवे जैसी तत्काल सेवा बाबा के समागम में भी मौजूद है। हां इसके लिए पैसा ज्यादा खर्च करना पड़ता है।

इस बात से ही लोगों का शक गहराया कि बाबा के समागम में कुछ झोल जरूर है। फिर बाबा जब तक लोगों को उनके घर के मंदिर में कौन कौन से देवी देवता होने चाहिए, उनका स्थान कैसा होना चाहिए, किस भगवान के चित्र कहां मौजूद होने चाहिए, पूजा की विधि क्या होनी चाहिए, कब कहां जगह दर्शन करने जाना चाहिए, समस्या सुन कर बाबा जब तक भक्तों को ये बताते रहे कि माता वैष्णों देवी के दर्शन करो या फिर साईं राम के दर्शन करने जाओ। ऐसे कुछ और पीठ हैं, जहां दर्शन करने को बाबा कहते थे। ये बात तो समझ में आती है और मेरा व्यक्तिगत अनुभव है कि अगर हम सच्चे मन से माता वैष्णो देवी या फिर साई राम के धाम में मत्था टेकते है, तो मुश्किल कम होती ही हैं। पर नोटों की गड्डियों पर बैठकर निर्मल ने तो धर्म की ऐसी तैसी करनी शुरू कर दी। ये खुद भगवान बन गया और लोगों से उल्टी सीधी बातें करके उनका इलाज बताने लगा। ऐसे मे भगवान को इसका भी इलाज करना जरूरी हो गया।

बताओ कोई भक्त मुश्किल में है, उससे ये बाबा पूछता है कि तुम्हारे सामने मुझे आलू की टिक्की क्यों दिखाई दे रही है। भक्त कहता है कि बाबा हमने तो कई साल हो गए आलू की टिक्की खाई ही नहीं। तो बाबा फिर पूछता है, तुमने आखिरी बार आलू की टिक्की देखी कब ? अरे बेवकूफी की हद है ना..। किसी भी रास्ते से गुजर जाओ, तमाम चाट ठेले वाले दिखाई पड़ जाएंगे । जाहिर है नजर पडेगी ही। भक्त कहता है कि समागम में आ रहा था तो रास्ते में एक ठेले पर देखा था। बाबा कहता है तो तुम्हारी खाने की इच्छा नहीं हुई। भक्त भला क्या जवाब दे, कहता है हां हुई तो..। फिर खाया क्यों नहीं.। जाओ समागम से निकलते ही खुद भी आलू की टिक्की खा लेना और कुछ टिक्की गरीबों को खिला देना कृपा आनी शुरू हो जाएगी।

वैसे मैं इस लाफ्टर शो (समागम) को इतनी बार देख चुका हूं कि अक्सर मैं खुद को बाबा महसूस करता हूं। मुझे लगता है कि मैं बाबा बनकर समागम की व्यवस्था बदल रहा हूं। और मेरे सामने हांथ जोड़कर खुद निर्मल खड़ा है। मुझसे कह रहा है कि बाबा जी आपके चरणों में कोटि कोटि प्रणाम। मैं पूछता हूं तू पूरे मन से मुझे प्रणाम कह रहा है या मुश्किल में है इसलिए ऐसा कह रहा है। निर्मल कोई जबाव नहीं देता है। मैं पूछता हूं कि मुझे  तुम्हारे सामने ये कोटि कोटि प्रणाम क्यों दिखाई दे रहा है? तुमने अपने मां बाप के चरणों में कब सिर झुकाया था। ये फिर खामोश रहता है। बहरहाल मैं इससे कहता हूं जाओ पहले मां बाप के चरणों में कोटि कोटि प्रणाम करो और फिर अपने घर के पांच बड़े सद्स्यों को प्रणाम करो। और हां याद रखना तुम्हारे पास जो धन है, उससे कभी भंडारा मत कराना, ऐसा किया तो तुम्हारा सर्वनाश हो जाएगा, क्योंकि ये धन ईमानदारी का नहीं है, लोगों की मजबूरी से वसूला गया ऐसा धन है, जिसका लाभ तुम नहीं पाओगे और इसकी वजह से तुम्हें जेल भी जाना पड़ सकता है। इसलिए जितनी जल्दी हो इस धन से छुटकारा पा जाओ। हैरान तो मैं इस बात पर हुआ कि मेरी इतनी कड़ी कड़ी बात सुनने के बाद भी निर्मल जाते समय हमें यानि नए बाबा के चरणों में कोटि कोटि प्रणाम करके गया। मुझे लगता है कि वो आत्मा की शुद्धि के लिए काम कर रहा है।

जब मैने निर्मल को सही राह दिखाई तो मुझे लगता है कि अब मैं किसी को भी अच्छा रास्ता बता सकता हूं। आप जानते  हैं कि ये बाबा लोगों को दवसंद पूजा के लिए प्रेरित करता है। मतलब आदमी जो कुछ भी कमाई करे,उसका दवसां हिस्सा इसके दरवार में चढा दे। मुझे तो ये फीस अधिक लगती है। इसलिए मैं एकवंद पूजा का हिमायती हूं।  यानि सौ रुपये कमाओ तो एक रुपये मेरा बनता है ना। मैं अपनी पूजा की फीस के बारे  में सोच ही रहा था कि यही निर्मल वेष बदल कर फिर आ गया मेरे सामने और कहने लगा कि मुझे नरक में जाने से बचने का रास्ता बताएं बाबा, जिससे स्वर्ग का रास्ता भी प्रशस्त हो, मुझ पर ऐसी कृपा करें। हालाकि मेरी फीस इतनी कम है, फिर भी इसने एकवंद पूजा नहीं कि और ना ही चढावा चढ़ाया। मुझे मालूम  है कि जब इसकी दुकान बंद हुई तो इसने अपने ही बाऊंसरों को मेरे यहां नीचे के लोगों से मिलकर नौकरी दिला दी और हमारे ही बाऊंसर इसे मेरे सामने सवाल पूछने का बार बार गलत ढंग से मौका दे देते हैं। मुझे लगा कि अगर इसकी चालाकी को रोकना है तो इसका हुलिया बदलना होगा। वरना तो ये और किसी को मौका ही नहीं देगा। मैने कहा कि भाई निर्मल आप पर कृपा  तब तक नहीं आ सकती,  जब तक आप अपनी मूंछे पूरी तरह नहीं कटवा देते हैं। निर्मल ने कहा मैं कटवा दूंगा, मैने बताया कि ऐसे वैसे नाई के यहां मत कटवाना, जाओ किसी अच्छे सैलून में कटवाना कृपा आनी शुरू हो जाएगी और स्वर्ग का रास्ता भी खुद जाएगा। बहरहाल निर्मल बाबा को अपने शरण में पाकर  मैं बहुत खुश था, लेकिन इसी बीच मेरी नींद खुल गई। लेकिन मुझे लगता है कि ये काम मैं कर सकता हूं और मैं अपनी फीस भी कुछ कम ही रखूंगा।

मुझे पता है कि आप चटखारे लेकर इस लेख को पढ़ रहे हैं, पर मैं आपको जगाना चाहता हूं कि ऐसे धोखेबाज बाबाओं से खुद भी बचें और लोगों को भी बचाइये। अभी तक आपको सिर्फ ये पता चला है कि इस बाबा ने दिल्ली में करोडों का होटल खरीदा है। इंतजार कीजिए होटल के भीतर की करतूतें भी जल्दी ही सामने आएंगी। वैसे इसे बाबा कहना भी गलत है, इसे पूजा पाठ का कोई ज्ञान नहीं है। सच कहूं तो इसका धर्म कर्म से दूर दूर तक कोई वास्ता ही नहीं है। चूंकि आज देश की मीडिया खासतौर पर टीवी चैनल के गाइड लाइन तय नहीं है, ये विज्ञापन के पैसे के लिए कुछ भी कार्यक्रम चला सकते हैं। देश की जनता को जो चूना इस बाबा ने लगाया है उसमें बाबा के साथ मीडिया को भी बराबर का जिम्मेदार ठहराया जाए तो गलत नहीं होगा। वैसे हां आपको हैरानी होगी, टीवी चैनल्स आधे घंटे का कोई प्रोग्राम तैयार करते हैं, उसमें लाखों रूपये खर्च होते हैं, फिर भी उसकी टीआरपी बाबा के विज्ञापन की आधी भी नहीं होती है। ऐसे में इसे टीआरपी बाबा कहना भी गलत नहीं होगा।

चलते चलते..

मित्रों आपको याद होगा कि मैने 20 दिन पहले इस बाबा की हकीकत से आपको रुबरू कराने का प्रयास किया था, उस समय मुझे लग रहा था कि सभी लोग बाबा का इतना गुण गाते हैं, मेरे लेख से कहीं आप सब को दुख ना पहुंचे। पर जिस तरह से मुझे आप सबके समर्थन का कमेंट मिला और टीवी न्यूज चैनल्स ने हमारे ब्लाग के लेख से मसाला लेकर स्टोरी बनाई, उससे मुझे लगा कि गलत बात कचोटती तो सब को है, पर सच बोलने की हिम्मत नहीं जुटा पाते है। अरे भाई अभिव्यक्ति की स्वंत्रता है, अपनी बात तो हम रख ही सकते हैं। मैं सभी का आभारी हूं,  जिसने मेरी रिपोर्ट को आगे बढाया।

एक नजर इस पर भी डालिए, जो मैने दो अप्रैल को ही आप सबके लिए लिखा था..

http://aadhasachonline.blogspot.in/2012/04/blog-post.html

आखिर में इस खबर पर भी नजर डालिए, इस बाबा ने क्रिकेटर युवराज को कैसे लगाया चूना।


Sunday 8 April 2012

जी हां ! आज है मेरा जन्मदिन ...


जी हां ! आज मेरा जन्मदिन है। सोचा तो था कि धूमधाम से जन्मदिन मनाऊंगा, खूब हंगामा बरपाऊंगा, कोशिश करुंगा कि पूरा परिवार मेरी इस खुशी में शिरकत करे, क्योंकि ये जन्मदिन कुछ खास है। लगता है कि आप सब घबरा गए कि एक और खर्च बढ गया, गिफ्ट लेने जाएं। फिर कोरियर करें, इतनी जहमत मत उठाइये । चलिए मैं पहले ही आपको बता दूं कि जन्मदिन मेरा नहीं, बल्कि मेरे ब्लाग " आधा सच " का है। ठीक साल भर पहले आज के ही दिन आठ अप्रैल को मैने अपना पहला लेख लिखा, जिसमें मैने अन्ना को जनता की असल दिक्कत बताने की कोशिश की। यानि देश की जनता के असल मुद्दे हैं क्या ? सच बताऊं देश की जनता भ्रष्टाचार से बिल्कुल नाराज नहीं है। उसकी  तो मांग भी अन्ना से बिल्कुल अलग है, जनता चाहती है कि देश में भ्रष्टाचार को ईमानदारी से लागू किया जाए। इससे कम से कम काम हो जाने की तो गारंटी रहेगी।

देश में लोगों ने कभी भ्रष्टाचार का विरोध किया ही नहीं, ना आज करना चाहते है। उनकी मुश्किल ये है कि भ्रष्टाचार में ईमानदारी नहीं रह गई है। नेताऔ इसर अफसर पैसे ले लेते हैं और काम भी नहीं करते हैं। अन्ना के सामने जितनी भीड़ खड़ी होकर बोलती है कि मैं भी अन्ना तू भी अन्ना, इसमें 99 फीसदी वही लोग हैं जो चाहते हैं कि नेता और अफसर पैसे लें और काम तुरंत काम कर दें, बेवजह की किच किच ना करें। बहरहाल ब्लाग में मेरी शुरुआत इसी दर्शन के साथ हुई थी। मेरा भी मानना है कि देश भ्रष्टाचार कभी खत्म नहीं हो सकता। हमें आंदोलन का रुख इस ओर मोडना चाहिए कि भ्रष्टाचार में ईमानदारी हो।

मुझे भी जाने क्या हो गया है, जन्मदिन पर भी ऐसी वैसी बातें याद आ रही हैं। लेकिन करें क्या गंदा है, पर धंधा है ना। छोड़िए दूसरी बातें, आइये मुद्दे की बात करें। वैसे आपने ये नहीं  पूछा कि जब जन्मदिन पर  हमने धमाल मचाने का मन बना लिया था, फिर क्या हुआ कि पूरे दिन खामोश रहे और रात में लोगों को बता रहे हैं कि आज मेरा जन्मदिन है। सच बताऊं ब्लाग परिवार से मन बहुत खट्टा है। तकलीफ ये है कि जिन लोगों का काम ब्लाग परिवार के नाम पर धब्बा जैसा है, वो सभी परिवार के बहुत सीनियर हैं। मैं उनके बारे में कुछ कह नहीं सकता। हम लोग जब बहुत गुस्से में होते हैं तो कहते हैं ना कि आप लक्ष्मण रेखा पार मत कीजिए। मतलब ये कि जब धैर्य जवाब दे जाए तो भी हम दूसरों को लक्ष्मण रेखा की याद दिलाते हैं। पर सच कहूं आज कुछ लोगों ने ना सिर्फ लक्ष्मण रेखा पार कर चुके हैं, बल्कि वो इससे इतनी दूर आ चुके हैं कि चाहें तो चेहरे पर लगे दाग मिटा नहीं सकते।

हां आज कल परिवार में लोग जिस तरह से एक दूसरे से बातें कर रहे हैं, वो देखकर हैरानी होती है। पता नहीं आप सब को इसका आभास है या नहीं लेकिन सच तो यही है कि हिंदी ब्लागर्स को आज भी लोग डाउन मार्केट टाइप समझते हैं। अब लगता है कि अगर लोग हमें अच्छी निगाह से नहीं देखते तो इसके लिए हम ही जिम्मेदार हैं। पिछले दिनों एक रचना ब्लाग पर आई, लोग आज तक नहीं समझ पाए कि आखिर ये रचना क्यों लिखी गई और इसके जरिए ब्लागर्स को क्या संदेश देने की कोशिश की गई है। अच्छा उस रचना पर कमेंट रचना के गुण दोष के आधार पर नहीं दिए गए, बल्कि जिसने लिखा है, उनके मित्र उस रचना के साथ खड़े हो गए, जो  उन्हें नहीं पसंद करते हैं, वो रचना के खिलाफ हो गए। हम जैसे लोग की भूमिका शून्य हो गई, क्योंकि हम रचना के साथ तो बिल्कुल नहीं खड़े थे, लेकिन रचनाकारा का मैं सम्मान करता हूं। लिहाजा मेरे लिए मुश्किल था कुछ भी कहना। मै मानता हूं कि मुझे अपनी राय सबके साथ शामिल करनी चाहिए थी,  पर मैं इतना ईमानदार नहीं हूं।

अच्छा इस रचना ने एक नया मोड़ तब ले लिया जब रचना के एक प्रबल विरोधी के खिलाफ कुछ खास लोगों ने मोर्चा खोल दिया। एक साझा ब्लाग का जिक्र मैं नहीं करना चाहता, पर इस ब्लाग का चरित्र आज तक मेरी समझ में नहीं आया। ब्लाग का इस्तेमाल अपनी थोथी राय सबको मानने के लिए मजबूर करने जैसे लगती है। हद तो तब हो गई, जब एक लेख और उसमें प्रकाशित चित्र से नाराज होने पर मां बहन की गाली पर उतर आए। दस दिन से जो कुछ देख रहा हूं, सच कहूं तो मन इतना दुखी है कि लोगों को ये बताना भी अच्छा नहीं लग रहा कि आज मेरे ब्लाग को पूरे साल भर हो गए। वैसे सच तो यही है कि हिंदी ब्लागिंग में जो कुछ चल रहा है, उसमें कुछ भी ऐसा नहीं है जिस पर हम सब गर्व कर सकें।

वैसे हां अगर मैं व्यक्तिगत रूप से अपने साल भर के इस सफर का मूल्यांकन करता हूं तो खुद को लकी मानता हूं। खासतौर पर कुछ ऐसे लोग यहां पर मेरे दोस्त के रुप में रहे जो किसी ना किसी खास विचारधारा से जुड़े हुए थे। ऐसे लोगों से आपकी जितनी जल्दी दूरी हो जाए वो ठीक है, क्योंकि ऐसे लोग ब्लागिंग नहीं करते, बल्कि स्वदेशी के नाम पर यहां तेल साबुन बेचने वालों की तरफदारी करते हैं।

मित्रों मेरा मानना है कि ब्लाग पर गृहणियों का एक बड़ा तपका सक्रिय है। ये या तो अपनी कविताओं की जरिए अपनी सोच दुनिया के सामने रखती हैं या फिर टीवी और न्यूज चैनल के जरिए मिलने वाली खबरों से देश की राजनीतिक हालातों के बारे में अपनी राय बनाती हैं। पुरुष तपका खुद को इतना विद्वान समझता है कि उसे किसी पर यकीन नहीं है। वो अपनी जानकारी को अंतिम समझता है, उसका मानना है कि जो उसकी जानकारी है, उसके बाद दुनिया का अंत हो जाता है, वही अंतिम सत्य है। खैर ऐसे लोगो का कोई इलाजा नहीं है और इलाज करने की कोशिश भी  बेकार है। ऐसे लोग धक्के खाने के बाद ही सभलते हैं। हां अक्सर बहुत सारे मित्र मुझसे जानना चाहते हैं कि आप आखिर हैं किसके साथ। मेरा सीधा सा जवाब है कि मैं अपने मन के साथ हूं, जो मुझे सही लगता है, उसे सही मानता हूं, जो मुझे ठीक नहीं लगता, उसे गलत ठहराने से पीछे नहीं हटता। यही वजह है कि मेरे ब्लाग पर आपको अन्ना, रामदेव, राहुल गांधी, सुषमा स्वराज, मुलायम सिंह यादव, अखिलेश यादव,  मायावती यहां तक की कोई भी गलत काम करता है तो वो मेरे निशाने पर होता है।

अच्छा जब ब्लाग  परिवार में इतने मतभेद हों तो आप ही बताइये क्या अच्छा लगेगा कि मैं अपने ब्लाग का जन्मदिन मनाऊं। बिल्कुल नहीं, यही वजह है कि आज पूरे दिन मैं खामोश रहा, घर की और ब्लाग की बत्ती बंद किए अंधेरे में सोचता रहा कि आखिर सुबह कब होगी ? वैसे मेरा मन कहता है कि ब्लाग परिवार की सुबह तो होगी, पर कब ये मैं नहीं कह सकता। इस परिवार में सबसे बड़ी खामी यही है कि अगर कोई गल्ती करता है तो वो मानने को तैयार नहीं है कि उससे गल्ती हो गई। आइंदा ध्यान रखेगा, वो उस गलती को सही साबित करने के लिए इतना नीचे गिर जाता है, जहां से वो  दोबारा उठने की कोशिश भी करे तो लोग उसे उठने नहीं देंगे।

बहरहाल मैं जानता हूं कि साल भर के ब्लागर्स की यहां कोई हैसियत नहीं है। फिर भी अच्छा बुरा तो वो समझता ही है ना। प्लीज रचना ऐसी ब्लाग पर होनी चाहिए कि हर आदमी को सुकून दे। ओह ! कितनी बातें करूं, हम तो भाषा की मर्यादा भी भूल गए हैं। हम सबसे घटिया भाषा के बारे में कहते हैं कि गंवारो की भाषा यानि गांव का सबसे घटिया आदमी, उसकी भाषा। लेकिन आज ब्लाग पर जो भाषा दिखाई दे रही है, वो गवारों से भी सौ गुनी घटिया है। हम जानवरों से बदतर होते जा रहे हैं। भला बताइये इस माहौल मे क्या जन्मदिन की पार्टी की जा सकती है। बिल्कुल नहीं। मैं तो पार्टी नहीं कर सकता। अगर सबकुछ ठीक रहा तो अगले साल देखूंगा। बहरहाल कुछ अपने ही लोगों ने मेरे जन्मदिन की पहली ही सालगिरह की बाट लगा दी।

इनसे भी मिल लीजिए... 


इनका नाम है ममता गुप्ता। फेसबुक पर हैं, पर मेरे फ्रैंडलिस्ट में नहीं है। इनके परिचय में लिखा है कि ये लखनऊ विश्व विद्यालय में हैं। वहां की कर्मचारी हैं या छात्रा कहना मुश्किल है। वैसे पहनावे से तो लगता है कि पढती होंगी। लेकिन इससे आप सबको सावधान रहना चाहिए। मुझे तो पता भी  नहीं चलता अगर मेरे किसी अभिन्न मित्र में ने मुझे बताया ना होता। ये लोगों के ब्लाग से लेख चुराती है और अपने वाल पर डाल देती है। जिस किसी के ब्लाग से लेती है, उसका जिक्र तक नहीं करती। मुझे जब बताया गया कि इसने ब्लाग से लेख की चोरी की है तो मैने इन्हें एक मैसेज भेजा कि आपको ऐसा नहीं करना चाहिए, लेकिन इस पर कोई असर नहीं हुआ। बाद में पता चला कि ये इसकी फितरत है।
चूंकि मैं लखनऊ से बहुत अच्छी तरह वाकिफ हूं और ये उसी शहर से हैं। मैने सोचा कि पता करुं इसके बारे में। इसके वाल पर ही कई दोस्तों को मैने मैसेज भेजा कि आपकी सहेली दूसरों के लेख चुराकर अपने वाल पर डालती है, फिर इसके दोस्तों का जवाब आया, सर, हम सब जानते हैं इसे, हम लोग तो बस फ्रैंडलिस्ट में है, इसके रिक्वेस्ट पर कमेंट करते रहते हैं। हम सबको पता है कि लिखना पढना तो इसके बस की बात ही नहीं। आप सोच रहे होंगे कि आखिर मैं इसकी तस्वीर के साथ इसके लिए ऐसा क्यों लिख रहा हूं, तो आप इस लिंक पर जाएं जहां इसने मेरे लेख को अपने नाम पर छाप रखा है। मेरा लेख.. http://aadhasachonline.blogspot.in/2012/04/blog-post.html#comment-form  आप इस ब्लाग पर देख सकते हैं। जिसे मैने दो अप्रैल को पोस्ट किया है। इसने इसे ही अपने फेसबुक पर डाल दिया है। इस लिंक पर..
https://www.facebook.com/photo.php?fbid=113132385485306&set=at.106173829514495.7964.100003656353018.100002843162047.100003602945962&type=1&ref=nf हां चोरी भी करती है और मानती भी नहीं कि इससे कोई गल्ती हुई है। चूंकि मेरे ब्लाग का सालगिरह है इसलिए मैं अपनी ओर से इसे यहीं क्षमा कर देता हूं।

बाबा रामदेव ना बाबा ना ना....

ये तस्वीर बाबा रामदेव की है या नहीं, मैं विश्वास के साथ नहीं कह सकता। फेसबुक से मैने ये तस्वीर ली है। यहां तमाम लोग कुछ तिकडम के जरिए तस्वीरों के साथ छेड़छाड़ करते हैं। अगर इसमें छेड़छाड़ की गई है तब तो मुझे कुछ नहीं कहना है, लेकिन तस्वीर सही है तो ये बाबा का असली रूप देखकर मैं क्या दुनिया हैरान हो जाएगी।
इस चित्र को देखने से साफ है कि बाबा अपने किसी मित्र के साथ चार्टड प्लेन में हैं। बाबा के हाथ में एक गिलास है, जिसमें देखने से तो लग रहा है कि ये व्हिस्की है, वैसे तो आजकल कई तरह के जूस भी मार्केट में है। इसलिए मैं दावे के साथ नहीं कह सकता कि बाबा के हाथ में क्या है। लेकिन ये तस्वीर जिसने भी फेसबुक डाली है, उसका मकसद तो यही साबित करने का है कि हम बाबा को जो समझते हैं, वो हमारी भूल है। दरअसल बाबा ऐसे हैं नहीं। सच क्या है, क्या बाबा ड्रिंक्स करते हैं या इस तस्वीर की हकीकत क्या है, ये सब हम बाबा पर ही छोड़ देते हैं।


Monday 2 April 2012

निर्मल बाबा का दरबार बोले तो लाफ्टर शो ...


भाई साधु संतो से तो मैं भी डरता हूं, इसलिए मैं पहले ही बोल देता हूं निर्मल बाबा के चरणों में मेरा और मेरे परिवार का कोटि कोटि प्रणाम। वैसे मैं जानता हूं कि साधु संत अगर आपको आशीर्वाद दें तो उसका एक बार फायदा आपको हो सकता है, पर वो चाहें कि आपको अभिशाप देकर नष्ट कर दें तो ईश्वर ने अभी उन्हें ऐसी ताकत नहीं दी है। इसलिए ऐसे लोगों से ज्यादा डरने की जरूरत नहीं है, लेकिन मेरा उद्देश्य सिर्फ लोगों को आगाह भर करना है, मैं किसी की भावना को आहत नहीं करना चाहता। चलिए आपको एक वाकया सुनाता हूं शायद आपकी समझ में खुद ही आ जाए।

पिछले दिनों मुझे लगभग 11 घंटे ट्रेन का सफर करना था, इसके लिए मैं रेलवे स्टेशन के प्लेटफार्म के बुक स्टाल पर खड़ा देख रहा था कि कोई हल्की फुल्की किताब ले लूं, जिससे रास्ता थोड़ा आसान हो जाए। बहुत नजर दौड़ाई तो मेरी निगाह एक किताब पर जा कर टिक गई। किताब का नाम था धन कमाने के 300 तरीके। मैने सोचा इसी किताब को ले लेते हैं इससे कुछ ज्ञान की बातें पता चलेंगी, साथ ही बिजिनेस के तौर तरीके सीखने को मिलेगें और सबसे बड़ी बात कि ट्रेन का सफर आसानी से कट जाएगा। लेकिन दोस्तों सफर आसानी से भले ना कटा हो पर जेब जरूर कट गई । 280 रुपये की इस किताब में माचिस, टूथपेस्ट, पालीथीन पैक, जूते की पालिस, मोमबत्ती, आलू चिप्स, पापड, मसाले के पैकेट तैयार करने जैसी बातें शामिल थीं। पूरी किताब पढ़ने के बाद मैं इस नतीजे पर पहुंचा धन कमाने का सबसे कारगर तरीका तो इसमें शामिल है ही नहीं, यानि मेरी नजर में धन कमाने के 300 तरीके वाली किताब छाप कर जितनी कमाई की गई है, किताब में शामिल तरीकों को अपना कर उसका आधा भी नहीं कमाया जा सकता।

बस जी भूमिका समझा दिया ना आपको, क्योंकि आजकल कुछ ऐसा ही कहानी चल रही है निर्मल बाबा के समागम यानि टीवी के लाफ्टर शो में। निर्मल बाबा की खास बात ये है कि उनके भक्तों की किसी भी तरह की समस्या हो, ये बाबा हर समस्या का समाधान वो पलक झपकते बता देते हैं। अब देखिए ना हम बीमार होते हैं तो डाक्टर के पास जाते हैं, पढाई लिखाई में कामयाब होने के लिए कोचिंग करते हैं, नौकरी पाने के लिए प्रतियोगी परीक्षाओं की गंभीरता से तैयारी करते हैं, किसी ने मकान या जमीन पर कब्जा कर लिया तो पुलिस की मदद लेते हैं, दुर्घटना हो जाने पर जल्दी से जल्दी अस्पताल जाने की कोशिश करते हैं, बेटी की शादी तय नहीं होने पर दोस्तों और रिश्तेदारों की मदद लेते हैं, नौकरी में प्रमोशन हो इसके लिए अपने काम को और मन लगाकर करते हैं, व्यापारियों का कहीं पेमेंट फंस जाए तो तगादा और ज्यादा करते हैं, बाल झड़ने लगे तो कुछ दवाएं लेते हैं, सुंदरता बनाए रखने के लिए ब्यूटिशियन की मदद लेते हैं, बुढापे में चलने फिरने  में तकलीफ ना हो तो व्यायाम और सुबह टहलने जाते हैंलेकिन अब आपको ये सब करने की जरूरत नहीं है, बल्कि आप बिना देर किए चले आएं निर्मल बाबा के दरबार में। 

बाबा के पास तीसरी आंख है, वो सामने आने वाले भक्त को 100 मीटर दूर से जान जाते हैं कि इसे क्या तकलीफ है और उसका इलाज क्या है। बाबा का मानना कि जीवन में अगर कुछ गड़बड़ होता है तो ईश्वर की कृपा आनी बंद हो जाती है और बाबा तीसरी आंख के जरिए बता देते हैं कि कृपा के रास्ते में कहां रुकावट है और इस रुकावट का इलाज क्या है।  हालांकि बाबा कब क्या बोल दें, कोई भरोसा नहीं है। एक ओर तो वो खुद ही लोगों को बताते हैं कि पाखंड से दूर रहें। साधु संतों के ड्रामें में नहीं फंसना चाहिए, खुद पूजा करो, क्योंकि ईश्वर भावना देखते हैं, सच्चे मन से भगवान को याद करें तो कृपा खुद आ जाएगी। ये बात मैं नहीं कह रहा हूं, खुद निर्मल बाबा कहते हैं, फिर मेरी समझ में नहीं आता कि ये बाबा पाखंडी किसे बता रहे हैं। पाखंड की सारी बाते तो उनके समागम में होती हैं और ये ज्ञान की बाते किसे समझा रहे हैं।

अब देखिए दो दिन पहले निर्मल बाबा एक नवजवान भक्त से पूछ रहे थे - तुम अपनी कमीज़ की बटन कैसे खोलते हो जल्दी जल्दी या देर से। सकपकाया भक्त बोला कभी जल्दी तो कभी देर से भी। बाबा बोले आराम आराम से खोला करो। कृपा आनी शुरू हो जाएगी। अब भला ये भी कोई प्रश्न है? एक भक्त से उन्होंने पूछा बाल कहां कटवाते हो, भक्त बोला नाई से कटवा लेता हूं। बाबा बोले कभी पारर्लर जाने का मन नहीं होता, भक्त संकोच करते हुए बोला होता तो है, तो जाओ पारर्लर में एक बार बाल कटवा लो, कृपा आनी शुरू हो जाएगी। एक गरीब महिला कुछ गंभीर समस्याओं से घिरी हुई थी, उनके सामने आई, वो बाबा से कुछ कहती, उसके पहले बाबा ही बोल पड़े, अरे भाई तुम्हारे सामने से मुझे कढी चावल क्यों दिखाई दे रहा है। वो बोली मैने कल कढी चावल ही खाया था, बाबा क्या बोलते, कहा अकेले ही खाया तुमने। वो बोली नहीं पूरे परिवार ने खाया। हां यही तो गल्ती है तुमने किसी बाहर के लोगों को नहीं खिलाया, जाओ चार दूसरे लोगों को कढी चावल खिला देना, कृपा आनी शुरू हो जाएगी।

कुछ और वाकये का जिक्र करना जरूरी समझ रहा हूं। बाबा कहते हैं कि पूजा में भावना होनी चाहिए, लेकिन जब बिहार की एक महिला को देखते ही उन्होंने कहाकि तुम छठ पूजा करती हो। वो बोली हां बाबा करती हूं, बाबा ने कहा कितने रुपये का सूप इस्तेमाल करती हो, वो बोली दस  बारह रुपये का। बाबा ने कहा बताओ दस बारह रुपये के सूप से भला कृपा कैसे आएगी, तुम 30 रुपये का सूप इस्तेमाल करो। कृपा आनी शुरू हो जाएगी। बात यहीं खत्म नही हुई। एक महिला भक्त को उन्होंने पहले समागम में बताया था कि शिव मंदर में दर्शन करना और कुछ चढावा जरूर चढाना। अब दोबारा समागम में आई उस महिला ने कहा कि मैं मंदिर कई और चढावा भी चढाया, लेकिन मेरी दिक्कत दूर नहीं हुई। बाबा बोले कितना पैसा चढ़ाया, उसने कहा कि 10 रुपये, बाबा ने फिर हंसते हुए कहा कि दस रुपये में कृपा कहां मिलती है, अब की 40 रुपये चढाना देखना कृपा आनी शुरू हो जाएगी।

अब देखिए इस महिला को बाबा ने ज्यादा पैसे चढाने का ज्ञान दिया, जबकि एक दूसरी महिला दिल्ली से उनके पास पहुंची, बाबा उसे देखते ही पहचान गए और पूछा शिव मंदिर में चढ़ावा चढ़ाया या नहीं। बोली हां बाबा चढा दिया। बाबा ने पूछा कितना चढ़ाया, वो बोली आपने 50 रुपये कहा था वो मैने चढ़ा दिया, और मंदिर परिसर में ही जो छोटे छोटे मंदिर थे, वहां दस पांच रुपये मैने चढ़ा दिया। बस बाबा को मौका मिल गया, बोले फिर कैसे कृपा आनी शुरू होगी, 50 कहा तो 50 ही चढ़ाना था ना, दूसरे मंदिर में क्यों चली गई। बस फिर जाओ.. और 50 ही चढ़ाना। क्या मुश्किल है, ज्यादा चढ़ा दो तो भी कृपा  रुक जाती है, कम चढ़ाओ तो कृपा शुरू ही नहीं होती है। निर्मल बाबा ऐसा आप ही कर सकते हो, आपके चरणों में पूरे परिवार का कोटि कोटि प्रणाम।
एक भक्त को बाबा ने भैरो बाबा का दर्शन करने को कहा। वो भक्त माता वैष्णों देवी पहुंचा और वहां देवी के दर्शन के बाद और ऊपर चढ़ाई करके बाबा भैरोनाथ का दर्शन कर आया। बाद में फिर बाबा के पास पहुंचा और बताया कि मैने भैरो बाबा के दर्शन कर लिए, लेकिन कृपा तो फिर भी शुरू नहीं हुई। बाबा ने पूछा कहां दर्शन किए, वो बोला माता वैष्णों देवी वाले भैरो बाबा का। बाबा ने कहा कि यही गड़बड़ है, तुम्हें तो दिल्ली वाले भैरो बाबा का दर्शन करना था। अब बताओ जिस बाबा ने कृपा रोक रखी है, उनके दर्शन ना करके, इधर उधर भटकते रहोगे तो कृपा कैसे चालू होगी। भक्त बेचारा खामोश हो गया।

यहां मुझे एक कहानी याद आ रही है। एक आदमी बीबी से हर बात पर झगड़ा करता था। उसकी बीबी ने नाश्ते में एक दिन उबला अंडा दे दिया, तो पति ने बीबी को खूब गाली दी और कहा कि आमलेट खाने का मन था, और तुमने अंडे को उबाल दिया। अगले दिन बेचारी पत्नी ने अंडे का आमलेट बना दिया, तो फिर गाली सुनी। पति ने कहा आज तो उबला अंडा खाने का मन था। तुमने आमलेट बना दिया। तीसरे दिन बीबी ने सोचा एक अंडे को उबाल देती हूं और एक का आमलेट बना देती हू, इससे वो खुश हो जाएंगे। लेकिन नाश्ते के टेबिल पर बैठी पत्नी को उस दिन भी गाली सुननी पड़ी। पति बोला तुमसे कोई काम नहीं हो सकता, क्योंकि जिस अंडे को उबालना था, उसका तुमने आमलेट बना दिया और जिसका आमलेट बनाना था, उसे उबाल दिया। कहने का मतलब मैं नहीं समझाऊंगा। आप मुझे इतना बेवकूफ समझ रहे हैं क्याकि निर्मल बाबा से सारे पंगे मैं ही लूंगा, कुछ चीजें आप अपने से भी तो समझ लो।

बहरहाल दोस्तों तीसरी आंखे क्या क्या चीजें देखतीं है, मैं तो ज्यादा नहीं जानता। पर परेशान हाल आदमी से ये पूछा जाए कि आपने मटके का पानी कब पिया, भक्त कहे कि मटका तो बाबा मैने कब देखा याद ही नहीं, फिर बाबा बोले कि याद करो, भक्त कहता है कि हां कुछ याद आ रहा है कहीं प्याऊ पर रखा देखा था। बाबा कहते है कि हां यही बात मैं याद दिलाना चाहता था, आप प्याऊ पर एक मटका दान दे आओ और उस मटके पानी खुद भी पियो और दूसरों को भी पिलाओ। एक दूसरे भक्त को बाबा कहते हैं कि आप के सामने मुझे सांप क्यो दिखाई दे रहा है। भक्त घबरा गया, बोला बाबा सांप से तो मैं बहुत डरता हूं। बाबा बोले तुमने सांप कब देखा, भक्त ने कहा मुझे याद नहीं कब देखा। बाबा बोले याद करो, बहुत जोर डालने पर उसने कहा एक सपेरे के पास कुछ दिन पहले देखा था। बस बाबा को मिल गया हथियार, बोले कुछ पैसे दिए थे सपेरे को, भक्त ने कहा नहीं पैसे तो नहीं दिए। बस वहीं से कृपा रुक रही है। अगली बार सपेरे को देखो तो पैसे चढ़ा देना, कृपा आनी शुरू हो जाएगी। वैसे तो बाबा के किस्से खत्म होने वाले ही नहीं हैपर एक आखिरी किस्सा बताता हूं। एक भक्त को उन्होंने कहाकि आपके मन में बड़ी बड़ी इच्छाएं क्यों पैदा होती हैं ? बेचारा भक्त खामोश रहा। बाबा बोले आप कैसे चलते हो, साईकिल, बाइक या कार से। वो बोला बाइक से। इच्छा होती है ना बडी गाड़ी पर चलने की, उसने कहा हां, बस बाबा ने तपाक से कह दिया कि यही गलत इच्छा से कृपा रुकी है। आप बड़ी गाड़ी रास्ते पर देखना ही बंद कर दें। अब बताओ भाई कोई आदमी रास्ते पर है, अब बड़ी गाड़ी आ जाए तो बेचारा क्या करेगा। आंख तो बंद नहीं करेगा ना। इसीलिए कहता हूं कि मुझे तो लगता है कि बाबा के सामने मूर्खो की जमात लगती है । आप अगर उनके प्रश्न और सलाह सुन लें तो हँस-हँस कर लोटपोट हो जाएँ। जय हो इस निर्मूल बाबा की !

चलिए बात खत्म करें, इसके पहले मैं आपको बता दूं कि कुछ लोगों ने अपने निर्मल बाबा की कृपा को ही रोक लिया और उन्हें सवा करोड़ रुपये का चूना लगा दिया। बात लुधियाना की है। बाबा को बैंक ने जो चेक बुक दी है, उसकी हूबहू कापी तैयार करके एक व्यक्ति ने सवा करोड़ रुपये बाबा के एकाउंट से निकाल लिया । हालाकि इस मामले में रिपोर्ट दर्ज हो गई है, पुलिस को फर्जीवाड़ा करने वालों की तलाश है। पर मेरा सवाल है कि जब बाबा के खुद के एंकाउंट में सेंधमारी हो गई और बाबा बेचारे कुछ नहीं कर पा रहे तो वो दूसरों के एकाउंट की रक्षा कैसे कर पाएंगे। वैसे भी निर्मल बाबा के जीवन या उनकी पृष्ठभूमि के बारे में बहुत कम लोगों को पता है। उनकी आधिकारिक वेबसाइट nirmalbaba.com  पर कोई जानकारी नहीं दी गई है। इस वेबसाइट पर उनके कार्यक्रमों, उनके समागम में हिस्सा लेने के तरीकों के बारे में बताया गया है और उनसे जुड़ी प्रचार प्रसार की सामग्री उपलब्ध है। झारखंड के एक अखबार के संपादक ने फेसबुक पर निर्मल बाबा की तस्वीर के साथ यह टिप्पणी की है, ‘ये निर्मल बाबा हैं। पहली बार टीवी पर उन्हें देखा। भक्तों की बात भी सुनी। पता चला..यह विज्ञापन है. आखिर बाबाओं को विज्ञापन देने की जरूरत क्यों पड़ती है? सुनने में आया हैये बाबा पहले डाल्टनगंज (झारखंड) में ठेकेदारी करते थे?’। मित्रों आप बाबा पर भरोसा करें, मुझे कोई दिक्कत नहीं, पर जरा संभल कर और हां बाबा जी आपकी कृपा बनी रहनी चाहिएदेखिए ज्यादा लंबी लंबी मत छोड़िएगा, क्योंकि ये पब्लिक है, सब जानती है।